उत्तर प्रदेश स्कूल विलय मामला: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू, शिक्षा के अधिकार पर सवाल

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UP school merger case
UP school merger case

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के विलय की नीति पर विवाद गहरा गया है। 16 जून 2025 को जारी सरकारी आदेश के तहत, 50 से कम छात्रों वाले 5,000 से अधिक स्कूलों को पास के स्कूलों में मिलाने का फैसला लिया गया। इस नीति को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, और 14 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई शुरू करने की सहमति दी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह नीति शिक्षा के अधिकार (RTE) का उल्लंघन करती है। आइए, इस मामले की पृष्ठभूमि, याचिका के तर्क, और संभावित प्रभावों पर विस्तार से जानें।

स्कूल विलय नीति की पृष्ठभूमि

उत्तर प्रदेश सरकार ने कम नामांकन वाले स्कूलों को बंद कर उन्हें निकटवर्ती स्कूलों में मिलाने का निर्णय लिया। इस नीति का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को अधिक कार्यात्मक और संसाधन-कुशल बनाना है। सरकार का तर्क है कि छोटे स्कूलों में कम छात्र-शिक्षक अनुपात और सुविधाओं की कमी के कारण पढ़ाई प्रभावित होती है। विलय से बेहतर सुविधाएँ, जैसे विज्ञान प्रयोगशालाएँ और पुस्तकालय, उपलब्ध होंगी। हालांकि, इस नीति का विरोध हो रहा है, क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा को प्रभावित कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता तैया खान सलमानी की ओर से वकील प्रदीप यादव ने याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 21A और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE) का उल्लंघन करती है।

मुख्य तर्क:

  • RTE उल्लंघन: RTE के नियम 4(1)(a) के तहत, 300 से अधिक आबादी वाले क्षेत्र में 1 किमी के दायरे में कक्षा 1-5 के लिए स्कूल होना अनिवार्य है। विलय से कई बच्चे स्कूल से दूर हो जाएँगे।
  • शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव: याचिका में दावा किया गया कि यह नीति पहले से कमजोर शिक्षा प्रणाली को और नुकसान पहुँचाएगी, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • छात्रों पर बोझ: बच्चों को दूर के स्कूलों में जाना पड़ेगा, जिससे ड्रॉपआउट दर बढ़ सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्या कांत और जोयमाल्या बागची की बेंच ने मामले को सुनने की सहमति दी और इसे अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है, लेकिन स्कूल बंद होने के प्रभाव की जाँच की जाएगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

इससे पहले, 7 जुलाई 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस नीति को बरकरार रखा था। हाईकोर्ट ने कहा कि यह नीति जनहित में है और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आवश्यक है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि नीति मनमानी या असंवैधानिक नहीं है। सरकार ने तर्क दिया कि छोटे स्कूलों में प्रतिस्पर्धी माहौल की कमी होती है, जिससे ड्रॉपआउट दर बढ़ती है।

याचिकाकर्ताओं के तर्क

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह नीति ग्रामीण बच्चों के लिए शिक्षा को और मुश्किल बनाएगी।

मुख्य बिंदु:

  • स्कूलों के विलय से बच्चों को 1-5 किमी तक पैदल या परिवहन से स्कूल जाना होगा, जो गरीब परिवारों के लिए चुनौती है।
  • लड़कियों की शिक्षा पर विशेष रूप से असर पड़ेगा, क्योंकि माता-पिता सुरक्षा कारणों से उन्हें दूर भेजने से हिचक सकते हैं।
  • हाईकोर्ट ने तथ्यों को पूरी तरह नहीं समझा, जिससे शिक्षा प्रणाली को नुकसान हो सकता है।

सरकार का पक्ष

उत्तर प्रदेश सरकार ने नीति का बचाव करते हुए कहा:

  • छोटे स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात असंतुलित है, जिससे पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • विलय से संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा, जैसे प्रयोगशालाएँ, खेल के मैदान और डिजिटल उपकरण।
  • यह नीति स्कूलों को बंद करने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें “जोड़ा” (pairing) करने के लिए है, ताकि शिक्षा प्रणाली टिकाऊ हो।

प्रभावित क्षेत्र और छात्र

  • प्रभावित स्कूल: लगभग 5,000 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल, जिनमें 50 से कम छात्र हैं।
  • छात्र: हजारों छात्र प्रभावित होंगे, विशेष रूप से ग्रामीण और कम आय वाले क्षेत्रों में।
  • क्षेत्र: सीतापुर, हरदोई, और अन्य ग्रामीण जिले सबसे अधिक प्रभावित होंगे।

सामाजिक और शैक्षिक प्रभाव

विलय नीति के समर्थक इसे संसाधन-कुशल मानते हैं, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह ग्रामीण शिक्षा को कमजोर करेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन की कमी और लंबी दूरी बच्चों के लिए बाधा बन सकती है। विशेष रूप से लड़कियों की ड्रॉपआउट दर बढ़ने की आशंका है। सामाजिक संगठनों और शिक्षक यूनियनों ने नीति का विरोध किया है, इसे “शिक्षा विरोधी” करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। जस्टिस सूर्या कांत ने कहा कि नीति की जाँच की जाएगी, खासकर यह देखते हुए कि क्या यह स्कूलों को बंद करने की ओर ले जाएगी। कोर्ट RTE के प्रावधानों और ग्रामीण बच्चों के अधिकारों पर ध्यान देगा। यह मामला शिक्षा नीतियों और संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।

विशेषज्ञों की राय

शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि विलय नीति के फायदे और नुकसान दोनों हैं। प्रो. अनिल गुप्ता (IIM लखनऊ) के अनुसार, संसाधन एकत्रीकरण से गुणवत्ता सुधर सकती है, लेकिन परिवहन और बुनियादी ढांचे की कमी इसे प्रभावी होने से रोक सकती है। वहीं, शिक्षक यूनियन के नेता रमेश सिंह ने कहा कि यह नीति ग्रामीण शिक्षा को “नष्ट” कर सकती है।

सामाजिक प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस नीति को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ हैं। कुछ लोग इसे शिक्षा सुधार का कदम मानते हैं, जबकि अन्य इसे ग्रामीण बच्चों के लिए अन्यायपूर्ण बताते हैं। X पर कई पोस्ट्स में शिक्षक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट से नीति पर रोक लगाने की माँग की है।

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